Sunday, September 14, 2025
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बेरोजगारी ने बढ़ाई पहाड़ों में कुंवारों की तादाद, युवा 30 पार शादी का इंतजार

Uttarakhand youth 30 years but not married

रानीखेत/अल्मोड़ा – उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में एक नई सामाजिक चुनौती उभर कर सामने आ रही है। यह चुनौती न केवल परिवारों की चिंता का कारण बन रही है, बल्कि युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक संतुलन को भी प्रभावित कर रही है। बेरोजगारी और निजी क्षेत्र की अस्थिर नौकरियों के कारण पहाड़ों के कई युवा 30 की उम्र पार करने के बावजूद अब तक अविवाहित हैं।

पहाड़ी क्षेत्रों में आजीविका के सीमित साधनों के चलते अब विवाह भी एक संघर्ष का विषय बन गया है। पहले फौज में भर्ती को एक भरोसेमंद विकल्प माना जाता था, लेकिन अग्निवीर योजना लागू होने के बाद उस ओर भी युवाओं का रुझान घटा है। अब युवाओं को शहरों की ओर रुख करना पड़ता है, जहां अस्थायी या कम वेतन वाली नौकरियां शादी के बाद की ज़िम्मेदारियों को निभाने में पर्याप्त नहीं होतीं।

समाज की बदलती सोच बन रही एक और वजह

विवाह के लिए अब गांवों में रहने वाले, खेती-किसानी या छोटे व्यवसाय करने वाले युवाओं को कमतर आंका जा रहा है। लड़कियों और उनके परिजनों की प्राथमिकता अब सरकारी नौकरी, अच्छा वेतन पैकेज और शहरी जीवनशैली है। यहां तक कि मेहनती और स्वावलंबी युवक भी केवल इस वजह से अस्वीकृत हो रहे हैं कि वे शहर में नहीं रहते।

इस सामाजिक असंतुलन का असर मानसिक तौर पर युवाओं पर दिखने लगा है — कई युवा अकेलेपन, तनाव और डिप्रेशन का सामना कर रहे हैं।


जमीनी हकीकत: पहाड़ के पांच कुंवारे युवाओं की कहानी

नवीन सिंह (32), रानीखेत
“बीए के बाद गांव में खेती और फल उत्पादन करता हूं। जब रिश्ता आता है तो लोग पूछते हैं नौकरी कहां है, पैकेज कितना है। क्या अब मेहनत और ईमानदारी का कोई मोल नहीं?”

सुनील नेगी (32), हल्द्वानी/गांव वापसी
“मां की तबीयत खराब हुई तो नौकरी छोड़ गांव लौट आया। अब शादी की बात होती है तो लोग कहते हैं, गांव में रहकर क्या करोगे?”

दीपक टम्टा (34), भिकियासैंण
“हर बार रिश्ता कहीं न कहीं अटक जाता है। नौकरी पक्की नहीं है। कई बार सोचता हूं अब अकेले ही सही।”

नरेंद्र सिंह रावत (33), चौखुटिया
“आईटीआई की है, बिजली का छोटा ठेका चलाता हूं। स्किल और सम्मान दोनों है गांव में, पर रिश्ता होते ही पहला सवाल होता है – शहर में रहते हो?”

अजय बोरा (31), द्वाराहाट
“पोस्ट ग्रेजुएशन किया, बैंक की परीक्षा दी – चयन नहीं हुआ। अब बागवानी और डेयरी कर रहा हूं। दो लड़ाइयाँ लड़ रहा हूं – समाज से और खुद से।”


समाज की सोच बदलने की जरूरत

पारस उपाध्याय, चिलियानौला
“अब तो रिश्ता भी प्रतियोगिता बन गया है। शहर की लड़कियां हमारी ज़िंदगी नहीं समझ पातीं। अगर हमें जैसे हैं वैसे ही स्वीकारा जाए, तो रिश्ते ज्यादा मजबूत बन सकते हैं।”

दिनेश चंद्र, मजखाली
“यह सामाजिक परिवर्तन है जिसे समझदारी से संभालना होगा। सिर्फ युवाओं को नहीं, पूरे समाज की सोच को बदलने की ज़रूरत है।”

उमाशंकर पंत, पुजारी – नीलकंठ महादेव मंदिर, रानीखेत
“पहले गुण, संस्कार और परिवार देखे जाते थे। अब नौकरी और पैसा ही सब कुछ है। यह बदलाव समाज को खोखला कर रहा है।”

निष्कर्ष

पहाड़ों में शादी अब एक पारिवारिक नहीं, सामाजिक और आर्थिक मुद्दा बन गया है। युवाओं को मौके देने के साथ-साथ समाज को भी अपनी सोच में लचीलापन लाना होगा। वरना यह “कुंवारों की फौज” सिर्फ आंकड़ों की नहीं, एक बड़ी सामाजिक चिंता की शक्ल ले लेगी।

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