Saturday, September 13, 2025
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हरिद्वार ज़मीन घोटाले में धामी सरकार की सख्त कार्रवाई: 2 IAS, 1 PCS सहित 12 अफसर निलंबित

हरिद्वार ज़मीन घोटाले में धामी सरकार की सख्त कार्रवाई: 2 IAS, 1 PCS सहित 12 अफसर निलंबित

उत्तराखंड की राजनीति और प्रशासन में बड़ा बदलाव लाने वाली कार्रवाई करते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हरिद्वार ज़मीन घोटाले में बड़ी कार्रवाई की है। करीब 54 करोड़ रुपये के इस भूमि घोटाले में 2 IAS और 1 PCS अफसर सहित कुल 12 अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है। मामले की जांच अब विजिलेंस विभाग को सौंप दी गई है, और दोषी पाए गए अफसरों पर विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू हो चुकी है।

कौन-कौन अफसर हुए निलंबित?

  1. कर्मेन्द्र सिंह (जिलाधिकारी, हरिद्वार) — भूमि क्रय की अनुमति और प्रशासनिक मंज़ूरी में संदेहास्पद भूमिका।
  2. वरुण चौधरी (पूर्व नगर आयुक्त, हरिद्वार) — पारदर्शी प्रक्रिया के बिना भूमि प्रस्ताव पारित करने और वित्तीय अनियमितता में संलिप्तता।
  3. अजयवीर सिंह (एसडीएम) — भूमि निरीक्षण में लापरवाही और गलत रिपोर्ट शासन को भेजना।
  4. निकिता बिष्ट (वरिष्ठ वित्त अधिकारी, नगर निगम)
  5. विक्की (वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक)
  6. राजेश कुमार (रजिस्ट्रार कानूनगो)
  7. कमलदास (मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, तहसील हरिद्वार)

पहले से निलंबित अफसरों की सूची:

  • रविंद्र कुमार दयाल (प्रभारी सहायक नगर आयुक्त)
  • आनंद सिंह मिश्रवाण (प्रभारी अधिशासी अभियंता)
  • लक्ष्मीकांत भट्ट (कर एवं राजस्व अधीक्षक)
  • दिनेश चंद्र कांडपाल (अवर अभियंता)

इसके अलावा संपत्ति लिपिक वेदवाल का सेवा विस्तार रद्द कर दिया गया है, और उनके विरुद्ध सिविल सर्विसेज रेगुलेशन के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।


क्या था ज़मीन घोटाला?

हरिद्वार नगर निगम ने शहर के बाहरी क्षेत्र में स्थित अविकसित और अनुपयुक्त कृषि भूमि, जिसे कूड़े के ढेर के पास बताया गया है, को 54 करोड़ रुपये में खरीदा। बताया जा रहा है कि इस जमीन की वास्तविक कीमत लगभग 15 करोड़ रुपये थी। इस खरीद में न केवल भूमि की आवश्यकता संदिग्ध थी, बल्कि बोली प्रक्रिया में भी पारदर्शिता का अभाव पाया गया। शासन के स्पष्ट निर्देशों को दरकिनार कर यह सौदा संपन्न हुआ।


मुख्यमंत्री धामी की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का असर

सीएम धामी की यह कार्रवाई केवल एक घोटाले के खिलाफ कदम नहीं है, बल्कि यह संदेश भी है कि अब उत्तराखंड में ‘पद नहीं, कर्तव्य और जवाबदेही’ महत्वपूर्ण हैं। चाहे अफसर कितना भी वरिष्ठ क्यों न हो, यदि वह जनहित और नियमों की अनदेखी करेगा तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई तय है।

धामी सरकार के इस कदम को उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के विरुद्ध निर्णायक प्रहार के रूप में देखा जा रहा है। यह पहली बार है जब किसी सत्तारूढ़ सरकार ने इतनी बड़ी संख्या में शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ इतनी सख्ती दिखाई है।


जनता को मिला स्पष्ट संदेश

मुख्यमंत्री के इस ऐतिहासिक फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि अब उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के लिए कोई स्थान नहीं। सरकार केवल घोषणाओं तक सीमित नहीं, बल्कि व्यवस्था की शुद्धि और जवाबदेही को सर्वोपरि मान रही है।

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