गंगा अवतरण दिवस: भारतीय संस्कृति की संवाहिका मां गंगा का महापर्व
भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा की आधारशिला मानी जाने वाली मां गंगा के अवतरण दिवस को ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को बड़े श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। इसे गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है।इस वर्ष गंगा दशहरा पर हस्त नक्षत्र, सिद्धि योग और व्यतिपात योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है — जो कई दशकों में एक बार ही आता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस पावन संयोग पर गंगा में स्नान, जप, तप और दान करने से कई गुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि इस दिन गंगा जल में डुबकी लगाने से सभी पापों का क्षय होता है और आत्मा को विशेष शुद्धता का अनुभव होता है।गंगा दशहरा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति, संस्कृति और पवित्रता का उत्सव है — जहां मां गंगा के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है, जिन्होंने न केवल जीवनदायिनी जल प्रदान किया, बल्कि भारतीय सभ्यता को भी समृद्ध और संस्कारित किया।
गंगा दशहरा 2025: दशकों बाद बना दुर्लभ संयोग, बढ़ा पर्व का महत्व
मान्यता के अनुसार, इस वर्ष 5 जून को मनाया जाने वाला गंगा दशहरा कई दृष्टियों से विशेष है। दशकों बाद इस बार गंगा अवतरण के दिन वही दिव्य योग बन रहे हैं, जिनके अंतर्गत मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। इस बार गंगा दशहरा पर हस्त नक्षत्र, सिद्धि योग, और व्यतिपात योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है, जिससे इस पर्व की आध्यात्मिक और ज्योतिषीय महत्ता और भी अधिक बढ़ गई है।
इन विशेष योगों के कारण गंगा दशहरा पर स्नान, दान, जप, तप, व्रत और उपवास करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। यह पर्व केवल बाह्य शुद्धि का नहीं, बल्कि आंतरिक पवित्रता और आत्मिक कल्याण का भी प्रतीक है।
ज्योतिषाचार्य उदय शंकर भट्ट के अनुसार, “इस वर्ष बनने वाले विशिष्ट योगों की साक्षी में गंगा माता का पूजन करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।” उन्होंने कहा कि मां गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि कल्याणकारी देवी और भारतीय संस्कृति की जीवनदायिनी रीढ़ हैं।
गंगा दशहरा पर की गई श्रद्धा, आस्था और सेवा — जैसे गंगा में स्नान, दीपदान, पवित्र मंत्रों का जाप — मन, वचन और कर्म से पवित्रता की ओर ले जाती है। यह दिन जीवन में सद्भाव, शांति और साधना का सन्देश लेकर आता है।