हंगामे की भेंट चढ़ा विधानसभा का मानसून सत्र, डेढ़ दिन में सिमटी कार्यवाही उत्तराखंड विधानसभा का मानसून सत्र विपक्ष के भारी हंगामे के कारण समय से पहले ही समाप्त हो गया। कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर कांग्रेस विधायकों की सभी कार्यवाही रोककर चर्चा की मांग के चलते प्रस्तावित चार दिवसीय सत्र महज डेढ़ दिन में सिमट गया।
बुधवार को सत्र के दूसरे दिन भी कांग्रेस विधायकों ने सदन में जोरदार हंगामा किया। उन्होंने विधानसभा सचिव की मेज पर पुस्तकें पटकते हुए और पीठ की ओर पर्चे उछालते हुए सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। इस कारण सदन की कार्यवाही को तीन बार स्थगित करना पड़ा, और प्रश्नकाल एक बार फिर नहीं हो सका।
हालांकि हंगामे के बीच 55 मिनट तक चली कार्यवाही में अनुपूरक विनियोग सहित नौ विधेयकों को पारित किया गया। साथ ही विभिन्न विधायकों की सूचनाएं ध्यानाकर्षण के लिए स्वीकार की गईं। इसके बाद सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया।
कांग्रेस विधायक मंगलवार से ही सदन में डटे हुए थे और बुधवार को कार्यवाही शुरू होने से पहले ही अध्यक्ष के आसन के सामने पहुंचकर सरकार के विरोध में नारेबाजी शुरू कर दी। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने विपक्ष से शांति बनाए रखते हुए प्रश्नकाल चलने देने की अपील की, लेकिन विधायकों ने बात नहीं मानी।
स्थिति को देखते हुए कार्यवाही पहले 15 मिनट के लिए स्थगित की गई। जब कार्यवाही फिर शुरू हुई तो विपक्ष ने नारेबाजी और तीव्र कर दी। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने आरोप लगाया कि राज्य में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है और आम नागरिक खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है। उन्होंने नैनीताल की घटना को इसका प्रमुख उदाहरण बताया।
इस दौरान कुछ कांग्रेस विधायक विधानसभा सचिव की मेज पर पुस्तकें पटकने लगे और उन्हें फाड़कर पीठ की ओर उछाल दिया। अध्यक्ष ने विधायकों से ऐसा न करने की अपील की, मगर कोई असर नहीं पड़ा। अंततः सदन को 35 मिनट के लिए फिर स्थगित करना पड़ा।
सदन को चलने दो, जनता की आवाज़ को उठने दो” — सत्तापक्ष ने विपक्ष पर साधा निशाना
विधानसभा सत्र के दौरान जारी हंगामे के बीच सत्तापक्ष के विधायकों ने भी जवाबी प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस विधायकों को कुछ पोस्टरनुमा कागज दिखाए, जिन पर लिखा था — “सदन को चलने दो, जनता की आवाज़ पहुंचने दो” और “विपक्ष अवैध मदरसों को क्यों बंद नहीं होने देना चाहता?”।
इन नारों को लेकर कांग्रेस ने सत्तापक्ष के इस व्यवहार को “ड्रामा” बताते हुए उसकी आलोचना की। इस दौरान सत्तापक्ष और विपक्ष के विधायकों के बीच तीखी नोकझोंक भी देखने को मिली। स्थिति बिगड़ने से पहले विधानसभा के सुरक्षा कर्मियों ने कुछ विधायकों की मेजों से ऐसे कागज हटाकर जब्त कर लिए।