संविदा कर्मियों और उपनल कर्मियों के लिए अलग-अलग समिति नियमावली पर चिंतन कर रही है.
देहरादून: उत्तराखंड में नियमितीकरण नियमावली पर पिछले लंबे समय से बहस जारी है. कैबिनेट में नियमावली लाए जाने की चर्चाओं के बीच उपनल कर्मियों में चिंता इस बात को लेकर है कि क्या उनके मामले में भी नियमितीकरण के लिए नियमावली पर होमवर्क पूरा कर लिया गया है.
दरअसल संविदा कर्मियों और उपनल कर्मियों के लिए अलग-अलग समिति नियमावली पर चिंतन कर रही है., जिससे ऐसे कर्मचारियों के बीच असमंजस की स्थिति बन गई है. उत्तराखंड में दैनिक वेतन, कार्य प्रभारित, संविदा, नियत वेतन, अंशकालिक और तदर्थ रूप में सेवाएं दे रहे कर्मचारियों को नियमित करने की चर्चाएं जोर पकड़ने लगी है.
माना जा रहा है कि जल्द ही ऐसे कर्मचारियों के लिए नियमितीकरण नियमावली बनकर तैयार हो जाएगी, जिस पर कैबिनेट की मोहर लगने के बाद कर्मचारियों के नियमितीकरण का रास्ता साफ हो जाएगा, लेकिन उपनल कर्मियों का क्या होगा इस पर अभी भी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है. हालांकि संविदा और तदर्थ कर्मियों की तरह ही उपनल कर्मियों के नियमितीकरण के लिए भी नियमावली बनाने का काम चल रहा है.
प्रदेश में जिस तरह संविदा और तदर्थ समेत कुछ दूसरी अस्थाई सेवाओं के नियमितीकरण को लेकर नियमवाली पर काम चल रहा है, इस तरह से उपनल कर्मियों को भी नियमित करने के लिए नियमावली बनाई जा रही है. खास बात यह है कि इन उपनल कर्मी और संविदा, तदर्थ कर्मियों के स्थाईकरण कई फैसला कोर्ट के निर्देशों के क्रम में किया जा रहा है.
मुख्यमंत्री कर चुके है घोषणा: उपनल कर्मियों को लेकर मुख्यमंत्री भी नियमावली बनाई जाने की घोषणा कर चुके हैं, जिसके बाद शासन स्तर पर एक समिति का गठन भी किया गया है, लेकिन काफी समय बीतने के बाद भी अब तक नियमावली अंतिम रूप नहीं ले पाई है.
उपनल कर्मियों में संशय की स्थिति: दूसरी तरफ संविदा कर्मियों के नियमितीकरण से जुड़ी नियमावली पर जल्द ही काम पूरा होने की चर्चाएं हैं. ऐसे में उपनल कर्मियों में भी संशय की स्थिति बनी हुई है. उनका मानना है कि जब संविदा, तदर्थ कर्मियों को भी उपनल कर्मियों की तरह ही नियमित किए जाने पर विचार चल रहा है तो फिर दोनों के लिए एक ही समिति का गठन क्यों नहीं किया गया?
उपनल कर्मियों की याचिका पर हाईकोर्ट दे चुका है आदेश: प्रमुख सचिव आरके सुधांशु की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया है. उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण को लेकर पूर्व में उपनल कर्मियों की ही याचिका पर हाईकोर्ट स्थाईकरण और समान काम का समान वेतन दिए जाने के आदेश कर चुका है. हालांकि इस आदेश के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार की एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) को खारिज कर दिया था. इसके बाद उपनल कर्मियों ने हाईकोर्ट में सरकार पर कंटेंप्ट की एप्लीकेशन दी थी, जिस पर आनन फानन में सरकार ने कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए नियमावली बनाने की तरफ कदम उठाया है.
नियमावली 10 साल से जुड़ी हो सकती है: संविदा और तदर्थ कर्मियों के लिए माना जा रहा है कि नियमावली 10 साल से जुड़ी होगी. यानी 2018 तक 10 साल सेवा पूरी करने वाले संविदा और तदर्थ कर्मचारियों को रेगुलर किया जा सकता है. हालांकि पहले भी नियमितीकरण 10 साल की सेवा वाले कर्मी को किए जाने की नियमावली थी, लेकिन बाद में इसे घटाकर 5 साल कर दिया गया था. वहीं 2018 में ही मामला हाईकोर्ट पहुंच गया और कोर्ट ने 5 साल में नियमितीकरण वाली इस नियमावली पर रोक लगा दी. अब मान जा रहा है कि सरकार एक बार फिर 10 साल की सेवा पूरी करने वाले कर्मियों को नियमावली में लाभ दे सकती है.
इसी आधार पर उपनाम कर्मचारियों के लिए अलग से बनाई गई समिति भी निर्णय ले सकती है. हालांकि इस पर भी उपनल कर्मचारियों का कहना है कि सरकार को नियमावली इस तरह की बनानी चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा उपनल कर्मचारी को इसका लाभ मिल सके. इस मामले पर प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री आर के सुधांशु नियमावली बनाए जाने के लिए भी गतिमान होने की बात कहते हैं. उधर उपनल कर्मचारी की नजरे भी इस समिति पर बनी हुई है.