Saturday, September 13, 2025
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सिंधु जल संधि पर रोक खून और पानी एक साथ नहीं बहने देगा भारत

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का यह बयान न केवल एक राजनीतिक प्रतिक्रिया है, बल्कि यह भारत की कूटनीतिक और सामरिक नीति में आए एक निर्णायक मोड़ को भी दर्शाता है। सिंधु जल संधि पर रोक लगाने का फैसला सीधे तौर पर पाकिस्तान को एक कड़ा और प्रतीकात्मक संदेश है कि अब भारत “खून और पानी” को एक साथ बहने नहीं देगा।

आइए इस बयान और इसके प्रभावों को कुछ प्रमुख बिंदुओं में समझते हैं:

सिंधु जल संधि पर रोक – क्या है इसका मतलब?

  • 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई यह संधि वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में बनी थी।
  • भारत तीन पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) का और पाकिस्तान तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का प्रमुख रूप से उपयोग करता है।
  • अब यदि भारत इस संधि पर पुनर्विचार करता है या उसे आंशिक/पूर्ण रूप से रोकता है, तो इसका असर पाकिस्तान की कृषि और जल आपूर्ति पर सीधा पड़ेगा।

आतंक के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की पुष्टि

  • सिंधु जल संधि पर रोक एक मात्र आर्थिक या रणनीतिक निर्णय नहीं, बल्कि यह आतंक के विरुद्ध राजनयिक दबाव की नीति है।
  • यह पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग करने की भारत की रणनीति का हिस्सा है।

“अब खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते” – एक भावनात्मक प्रतीक

  • इस वाक्य का इस्तेमाल पहले भी 2016 में उरी हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने किया था।
  • इसका अर्थ यह है कि जब भारत के नागरिकों का खून बह रहा हो, तब पानी जैसी जीवनदायिनी चीज़ पाकिस्तान को देना स्वीकार्य नहीं।

अटारी बॉर्डर चेक पोस्ट बंद करना – और भी सख्त कदम

  • यह कदम सीमा पर आवागमन को सीमित कर देगा, जिससे व्यापारिक और सांस्कृतिक संपर्क पर असर पड़ेगा।
  • यह भारत की कूटनीतिक दूरी की नीति का हिस्सा है।

राजनीतिक और सामरिक दृष्टिकोण से क्या संदेश गया है?

  • भारत अब केवल बयान नहीं देता, कदम भी उठाता है।
  • यह देश के भीतर भी एक सशक्त राजनीतिक संदेश है — कि “हम कमजोर नहीं हैं”।
  • अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह संदेश है कि भारत आतंकी हमलों को अब सहन नहीं करेगा।

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