एक राष्ट्र-एक चुनाव’ लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में अहम कदम: जेपीसी अध्यक्ष पी.पी. चौधरी ‘One Nation-One Election’ is an important step towards strengthening democracy: JPC Chairman PP Chaudhary
देहरादून — ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की अवधारणा पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के अध्यक्ष और वरिष्ठ सांसद पी.पी. चौधरी ने इस व्यवस्था को भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक बताया है। अपने उत्तराखंड दौरे के दौरान उन्होंने कहा कि जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, उनके पास स्पष्ट और ठोस तर्कों की कमी है।
जेपीसी फिलहाल देशभर में विभिन्न हितधारकों से सुझाव और राय ले रही है। पी.पी. चौधरी ने कहा कि अगर यह व्यवस्था लागू होती है, तो देश की जनता को एक साथ मतदान करने का अधिकार मिलेगा और राज्यों में बार-बार होने वाले चुनावों से मुक्ति मिल सकेगी, जिससे समय और संसाधनों की बचत होगी।
उत्तराखंड के दो दिवसीय दौरे के दौरान समिति ने मसूरी रोड स्थित एक होटल में विभिन्न राजनीतिक दलों, एनटीपीसी, एनएचपीसी, टीएचडीसी और आरईसी जैसे सार्वजनिक उपक्रमों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर इस मुद्दे पर चर्चा की और उनके विचार सुने।
मीडिया से बातचीत में चौधरी ने बताया कि 1967 तक देश में लगातार 15 वर्षों तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे और उस समय कोई अराजकता नहीं फैली। वर्तमान में भी जिन राज्यों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं, वहां से सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं।
गढ़वाल सांसद और जेपीसी के सदस्य अनिल बलूनी ने कहा कि समिति देशभर में विभिन्न वर्गों से संवाद कर रही है। उत्तराखंड में भी राजनीतिक दलों, प्रशासन, स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियों और नागरिकों से राय ली जा रही है। उन्होंने कहा, “देश में इस पहल को लेकर उत्साह है। एक राष्ट्र-एक चुनाव से कई फायदे होंगे और इससे संसाधनों की बचत के साथ-साथ चुनावी प्रक्रिया अधिक प्रभावशाली बनेगी।”
बलूनी ने यह भी जोड़ा कि केंद्र सरकार इस विषय पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन कर रही है। जब संसद में यह प्रस्ताव आया तो विपक्ष ने जेपीसी के गठन की मांग की, जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया। अब समिति देशभर में संवाद स्थापित कर रही है और अन्य राज्यों का भी दौरा करेगी।
उत्तराखंड जैसे पर्वतीय और दुर्गम राज्य के लिए ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की अवधारणा विशेष रूप से उपयोगी हो सकती है, क्योंकि यहां बार-बार चुनाव कराना प्रशासन और संसाधनों दोनों पर अतिरिक्त बोझ डालता है। समिति को अब तक जहां-जहां से प्रतिक्रिया मिली है, वहां इसे लेकर सकारात्मक माहौल देखने को मिला है। लोग चाहते हैं कि इसे जल्द कानून बनाकर लागू किया जाए।