देहरादून/हरिद्वार, हरिद्वार नगर निगम की भूमि खरीद में हुए कथित करोड़ों के घोटाले को लेकर वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रणवीर सिंह चौहान द्वारा प्रस्तुत जांच रिपोर्ट ने प्रशासनिक गलियारों में हलचल मचा दी है। रिपोर्ट में हरिद्वार के जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह, तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चौधरी और एसडीएम अजयवीर सिंह को प्रथम दृष्टया दोषी ठहराया गया है।
रिपोर्ट शहरी विकास सचिव नितेश झा को सौंपी गई है और अब निर्णय की गेंद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकार के पाले में है।
क्या है मामला:
नगर निगम हरिद्वार ने सराय गांव में वर्ष 2024 के अंत में एक 33 बीघा कृषि भूमि को कमर्शियल उपयोग के लिए लगभग 54 करोड़ रुपये में खरीदा था। जांच में सामने आया कि भूमि का लैंड यूज नियमों को ताक पर रखकर केवल 20 दिनों में बदल दिया गया, जिससे उसकी कीमत अचानक कई गुना बढ़ गई। सर्किल रेट के अनुसार यह भूमि 15 करोड़ से भी कम में खरीदी जा सकती थी।
जांच में सामने आई प्रमुख बातें:
- भूमि खरीद में पूर्व अनुमति, ट्रांसपेरेंसी और नीलामी प्रक्रिया का उल्लंघन
- लैंड यूज परिवर्तन में एसडीएम कार्यालय की असामान्य तेजी
- भूमि को गोदाम निर्माण के नाम पर खरीदा गया, लेकिन उपयोग को लेकर स्पष्ट योजना नहीं थी
- सरकारी खजाने को करोड़ों की चपत, बिना ठोस परियोजना के भूमि क्रय
- फाइलों के “असामान्य वेग” से दौड़ने पर “बाहरी दबाव” की आशंका
अब तक की कार्रवाई:
1 मई को चार नगर निगम अधिकारियों को निलंबित किया गया था।
अब जांच रिपोर्ट के आधार पर तीन वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों पर भी कार्मिक विभाग स्तर पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की संभावना बन रही है।
किसानों के खाते फ्रीज:
जिन किसानों से भूमि खरीदी गई, उनके खातों को फ्रीज करने के निर्देश जारी कर दिए गए हैं।
पारदर्शिता पर गंभीर सवाल:
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि भूमि खरीद के पीछे कोई स्पष्ट योजना या परियोजना नहीं थी, और न ही शासन से स्वीकृति ली गई थी। धारा 143 के अंतर्गत दी गई सशर्त अनुमति का भी दुरुपयोग हुआ।
निष्कर्ष:
हरिद्वार भूमि खरीद घोटाले में प्रशासनिक लापरवाही, वित्तीय अनियमितता और संभावित भ्रष्टाचार की पुष्टि के बाद अब नजरें मुख्यमंत्री धामी सरकार की कार्रवाई पर टिकी हैं। क्या दोषियों पर सख्त एक्शन लिया जाएगा या फिर यह मामला भी फाइलों में दब जाएगा — यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।