महज उम्रदराज होना बहु-बच्चों को बेघर करने का लाइसेंस नहीं : डीएम
देहरादून, जिला मजिस्ट्रेट कोर्ट में पेश एक मार्मिक प्रकरण में डीएम ने साफ संदेश दिया है कि सिर्फ बुजुर्ग होना किसी को अपने बेटे-बहू और मासूम पोती को बेदखल करने का अधिकार नहीं देता। फ्लैट के लालच में राजपत्रित पद से सेवानिवृत्त एक बुजुर्ग पिता ने अपने ही अल्प वेतनभोगी, बीमार बेटे और बहू को चार साल की पोती सहित घर से निकालने की कोशिश की थी। डीएम कोर्ट ने दो ही सुनवाइयों में मामले की सच्चाई परखते हुए पीड़ित परिवार को घर में पुनः प्रतिस्थापित कर न्याय दिलाया।
प्रकरण में पिता ने भरणपोषण अधिनियम के तहत बेटे के खिलाफ वाद दायर कर यह आरोप लगाया था कि बेटा-बहू उनसे मारपीट करते हैं और देखभाल नहीं करते। सुनवाई के दौरान जांच में सामने आया कि पिता शारीरिक रूप से सक्षम हैं और माता-पिता की कुल आय ₹55,000 प्रतिमाह है, जबकि बेटे अमन वर्मा और बहू मीनाक्षी की संयुक्त आय मात्र ₹25,000 है।
डीएम कोर्ट ने पाया कि बुजुर्ग दंपती ने अपने निजी स्वार्थ के लिए कानून का दुरुपयोग करते हुए परिवार को घर से निकालने का षड्यंत्र रचा था। उन्होंने बेटे के परिवार को पहले बाहरी लोगों से पिटवाया और फिर कोर्ट में झूठा मामला दाखिल किया।
डीएम का सख्त रुख बना नजीर
डीएम ने भरणपोषण अधिनियम का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए वाद को खारिज किया और लाचार दंपती को पुनः घर में बसाने का आदेश दिया। साथ ही वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक देहरादून को निर्देश दिए गए कि दोनों पक्षों के निवास पर हर माह दो बार निरीक्षण कराया जाए ताकि शांति व्यवस्था बनी रहे और किसी पक्ष को उसके कानूनी अधिकार से वंचित न किया जाए।
यह मामला संगीता वर्मा बनाम अमन वर्मा के रूप में दर्ज था, जिसमें पिता की मासिक पेंशन ₹30,000 और मां की ₹25,000 थी, जबकि पुत्र अमन वर्मा निजी क्षेत्र में कार्यरत है और उसकी आय ₹25,000 है। अमन के परिवार में एक चार साल की पुत्री भी है, जिसकी देखभाल और पालन-पोषण एक संवेदनशील विषय है।
प्रचलित सोच को झकझोरने वाला निर्णय
डीएम कोर्ट का यह निर्णय उन सभी मामलों के लिए मिसाल बन गया है, जहां बुजुर्ग अपने अधिकारों की आड़ में अपने ही परिवार को प्रताड़ित कर रहे हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि भरणपोषण अधिनियम का उद्देश्य असहाय बुजुर्गों को संरक्षण देना है, न कि इसका दुरुपयोग कर पीढ़ियों के बीच की खाई को बढ़ाना।
डीएम ने यह भी कहा कि कानून की आड़ में निर्दोषों को बेघर करने की कोई भी कोशिश सफल नहीं होने दी जाएगी।
इस ऐतिहासिक निर्णय से स्पष्ट है कि जिला प्रशासन केवल बुजुर्गों के अधिकारों का ही नहीं, बल्कि परिवार की अन्य कमजोर इकाइयों — बहू, बच्चे, और नौनिहालों — के अधिकारों का भी बराबरी से संरक्षण करेगा।
मुख्य बिंदु संक्षेप में:
- पिता ने झूठा मामला दर्ज कर बेटे-बहू को बेदखल करने की कोशिश की
- डीएम ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद पुत्र को पुनः घर में बसाने का आदेश दिया
- एसएसपी को परिवार की सुरक्षा और माहवारी निरीक्षण के निर्देश
- भरणपोषण अधिनियम के दुरुपयोग को रोकने की सख्त चेतावनी
- यह फैसला समान प्रकृति के मामलों में नजीर बनेगा