रिमोट सेंसिंग से हुई नई खदानों की पुष्टि
देहरादून। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में तांबे के विशालकाय भंडार का पता चलने के बाद वैज्ञानिक समुदाय में उत्साह बढ़ गया है। गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय की शोध टीम ने वाडिया इंस्टीट्यूट में आयोजित जियो स्कॉलर मीट में इस महत्वपूर्ण खोज की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की। शोध छात्रा पल्लवी उनियाल ने विभागाध्यक्ष प्रो. एमपीएस बिष्ट के नेतृत्व में यह अध्ययन किया है।
पल्लवी के अनुसार, रुद्रप्रयाग के पोखरी के पास धनपुर–सिदौली क्षेत्र में 1950 के दशक में स्थानीय लोग तांबे का खनन करते थे और इसे घरेलू उपयोग में लाते थे। इसी ऐतिहासिक जानकारी के आधार पर शोध टीम को इस इलाके में अन्य स्थानों पर भी तांबे की मौजूदगी का अंदेशा हुआ। टीम ने आधुनिक स्पेक्ट्रो-रेडियोमीटर तकनीक का उपयोग करते हुए इस क्षेत्र में कई नए स्थलों पर तांबे की पुष्टि की है।जीएसआई के वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड के लामेरी-कोटेश्वर इलाके से 355 नमूने एकत्रित किए. सोना तथा आधार धातु का लखनऊ के जीएसआई के केमिकल डिवीजन में विश्लेषण किया गया.
यह पहली बार है जब इस क्षेत्र में रिमोट सेंसिंग तकनीक के माध्यम से खनिज खोज की गई है। तकनीक की सहायता से उन दुर्गम स्थानों पर भी तांबे के संकेत मिले हैं, जहां भौगोलिक परिस्थितियों के कारण पहुँचना संभव नहीं था। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह खोज भविष्य में उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति को मजबूत आधार दे सकती है।
इधर, चम्पावत जिले की लधियाघाटी क्षेत्र में भी तांबे के भंडार होने के संकेत पहले सामने आ चुके हैं। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) की टीम ने हाल ही में इस क्षेत्र के सर्वे में तांबे तथा यूरेनियम की संभावनाओं का उल्लेख किया था। पिछले वर्ष किए गए विस्तृत सर्वे में इन धातुओं के महत्वपूर्ण संकेत पाए गए थे।
रुद्रप्रयाग में मिले नए भंडारों के नमूने अब गुणवत्ता जांच के लिए भेजे जा रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि ये भंडार उच्च गुणवत्ता के निकले, तो यह प्रदेश के खनन, उद्योग और अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा अवसर साबित हो सकता है।


