भारतीय महिला क्रिकेट टीम के आईसीसी वर्ल्ड कप जीतते ही, टीम की स्टार खिलाड़ी स्नेह राणा के देहरादून स्थित सिनौला गाँव में उत्सव का माहौल बन गया। न सिर्फ ढोल-नगाड़े बजे, बल्कि स्नेह के संघर्ष और सफलता की कहानी ने हर किसी की आँखें खुशी और गर्व के आँसुओं से भर दीं।
परिवार की भावनाएँ और संघर्ष
- माँ का गर्व: स्नेह राणा की माँ विमला राणा ने जब टीवी पर बेटी को ट्रॉफी उठाते देखा, तो उनकी आँखें नम हो गईं। उन्होंने भावुक होकर कहा, “स्नेह ने पिता का सपना पूरा कर दिया।” यह जीत परिवार के सालों की मेहनत और उम्मीद का फल है।
- बचपन का जुनून: माँ ने बताया कि जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते हैं, स्नेह ने क्रिकेट से दोस्ती कर ली थी। वह बचपन से ही काफी मेहनती थीं और वर्षा हो या ठंड, सुबह-सुबह प्रैक्टिस के लिए निकल जाती थीं।
- बड़ी बहन का उत्साह: स्नेह की बड़ी बहन रुचि राणा ने कहा कि भले ही दीवाली खत्म हो गई हो, लेकिन उनकी असली दीवाली तो फाइनल जीतने के बाद ही मनी। सेमीफाइनल जीतने के बाद ही उन्हें यकीन हो गया था कि बेटियाँ फाइनल में भी बेहतरीन प्रदर्शन करेंगी।
कमबैक क्वीन” की कहानी
स्नेह के क्रिकेट के प्रति जुनून ने ही उन्हें मुश्किल दौर से बाहर निकाला:
- चोट का संघर्ष: 2016 में खेल के दौरान घुटने में लगी चोट के कारण वह लंबे समय तक क्रिकेट से दूर हो गई थीं।
- शानदार वापसी: उन्होंने करीब चार साल बाद भारतीय टीम में दोबारा वापसी की। उनके इसी जुनून और दृढ़ता की वजह से उन्हें भारतीय टीम में “कमबैक क्वीन” कहा जाने लगा।
एकेडमी और कोच का जश्न
स्नेह के बचपन के कोच नरेंद्र शाह ने भी इस सफलता पर खुशी जताई।
- एकेडमी का उत्सव: जिस लिटिल मास्टर क्रिकेट एकेडमी से स्नेह ने क्रिकेट सीखा, वहाँ बच्चों ने उनकी तस्वीर के साथ तिरंगा लहराकर जश्न मनाया।
- कोच की राय: कोच नरेंद्र शाह और किरन शाह ने कहा कि स्नेह हमेशा से अनुशासित, जुझारू और समर्पित खिलाड़ी रही हैं। उन्होंने बताया कि मुश्किल दौर में भी स्नेह ने हार नहीं मानी और अपनी फिटनेस, बल्लेबाजी और गेंदबाजी पर लगातार मेहनत की।



