चातुर्मास में अभीष्ट की सिद्धि के लिए भक्त प्रिय वस्तुओं का त्याग करेंगे। वहीं हरिशयनी एकादशी पर भगवान चार महीने योग निद्रा में चले गए। इस दौरान मंदिरों में जप-तप और अनुष्ठान करते साधक नज़र आए। साथ ही विष्णु मंदिरों में विविध अनुष्ठान प्रांरंभ हो गए ।
भगवान के चार महीने विश्राम के दौरान हम लोग भी यम नियम और संयम का पालन करते हैं। इन चार महीने के दौरान हम लोग अपनी कोई न कोई प्रिय चीज का त्याग कर देते हैं। कुछ लोग अपनी बुरी आदतों को त्यागने का संकल्प लेते हैं और चार महीने तक इसका पालन करते हैं।
भूमि पर शयन और पलाश के पत्तों पर है भोजन का नियम
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि देवशयनी के दिन भगवान विष्णु पाताल में सोने चले जाते हैं, इसलिए देवशयनी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक मनुष्य को पलंग पर नहीं सोना चाहिए। इस समय में जो व्यक्ति भूमि पर शयन करता है और पलाश के पत्तों पर भोजन करता है। नियमित दीप दान करता है और ब्रह्मचर्य का पालन करता है वह पाप मुक्त व्यक्ति बैकुंठ में स्थान पाता है और भगवान की सेवा में रहता है।