‘देवभूमि’ उत्तराखंड में स्कूली शिक्षा को लेकर सरकार ने एक बड़ा और अहम फैसला लिया है। राज्य सरकार ने प्रदेश के सभी स्कूलों में श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों का पाठ अनिवार्य कर दिया है। इस निर्णय का उद्देश्य नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति, नैतिक मूल्यों और जीवन जीने की कला से परिचित कराना है।
क्या है नया आदेश?
शिक्षा विभाग द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार, यह व्यवस्था राज्य के सभी सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में लागू की जाएगी। यद्यपि अभी विस्तृत रूपरेखा सामने आनी बाकी है, लेकिन माना जा रहा है कि स्कूलों में सुबह की प्रार्थना सभा (मॉर्निंग असेंबली) के दौरान छात्रों द्वारा गीता के श्लोकों का सस्वर पाठ किया जाएगा। यह पाठ दैनिक दिनचर्या का हिस्सा होगा।
सरकार का तर्क – नैतिक मूल्यों का होगा विकास
सरकार का मानना है कि श्रीमद्भागवत गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण मानवता के लिए जीवन जीने का एक मार्गदर्शक दर्शन है। सरकार का तर्क है कि आज के प्रतिस्पर्धी दौर में छात्रों को मानसिक तनाव से निपटने के लिए गीता की शिक्षाएं मददगार साबित होंगी।
कर्तव्य बोध – गीता कर्म प्रधान ग्रंथ है, जो छात्रों को उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक करेगा।
सांस्कृतिक जुड़ाव: इससे बच्चे अपनी जड़ों और प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ सकेंगे।
उत्तराखंड सरकार के इस कदम को शिक्षा में सांस्कृतिक मूल्यों को शामिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है। कई शिक्षाविदों और सामाजिक संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है, उनका कहना है कि इससे छात्रों के चरित्र निर्माण में मदद मिलेगी।
हालाँकि, शिक्षा के धर्मनिरपेक्ष ढांचे में किसी एक धार्मिक ग्रंथ को अनिवार्य करने पर कुछ स्तरों पर बहस छिड़ने की भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
बहरहाल, अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि इस आदेश का जमीनी स्तर पर किस तरह से क्रियान्वयन किया जाता है और स्कूली पाठ्यक्रम के साथ इसका सामंजस्य कैसे बैठाया जाएगा।


