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हिमालय की गर्मी से बनेगी बिजली, जियो थर्मल एनर्जी पर काम शुरू

हिमालय की गर्मी से जल्द ही प्रदेश में बिजली उत्पादन होगा। पहली बार भू-तापीय ऊर्जा(जियोथर्मल एनर्जी) से बिजली उत्पादन पर काम शुरू किया गया है। इसके लिए राज्य सरकार व ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड (ओएनजीसी) जल्द ही एमओयू साइन करेंगे। जल्द ही ओएनजीसी, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और आइसलैंड जियो सर्वे के विशेषज्ञों की टीम प्रदेश में अलग-अलग जगहों पर जियोथर्मल एनर्जी की संभावनाएं तलाश करने आएगी।

उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर भू-तापीय ऊर्जा होने की संभावना है। पूर्व के अध्ययनों में भी ये बात सामने आ चुकी है। पिछले महीने ओएनजीसी ने लद्दाख में भू-तापीय ऊर्जा प्रोजेक्ट स्थापित करने के लिए आइसलैंड जियो सर्वे नामक वैज्ञानिक व शोध संस्था के साथ एमओयू साइन किया है। इस दौरान ओएनजीसी की निदेशक विस्तार सुषमा रावत ने इसे ऊर्जा जरूरतें पूरी करने का एक अच्छा उपाय मानते हुए ये भी कहा था कि देश के अन्य राज्यों में इसकी संभावनाएं देखी जाएंगी। इसी क्रम में, उत्तराखंड सरकार अब ओएनजीसी के साथ मिलकर राज्य में जियो थर्मल एनर्जी पर काम शुरू करने जा रही है।

हिमालय की गर्मी से बनेगी बिजली, जियो थर्मल एनर्जी पर काम शुरू

वर्ष 2008 में गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रो. कैलाश भारद्वाज और प्रो. एससी तिवारी का एक शोधपत्र प्रकाशित हुआ था। इसमें उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में जियो थर्मल ऊर्जा की अपार संभावनाएं जताई गईं थीं। उन्होंने अपने शोध में बताया था कि हिमालय के गर्भ में 121 से 371 डिग्री सेल्सियस तक ऊर्जा छुपी हुई है, जिसका उपयोग बिजली उत्पादन में किया जा सकता है। शोध में उन्होंने तपोवन जियोथर्मल स्प्रिंग के निकट धौलीगंगा के तीन किलोमीटर अपस्ट्रीम एरिया तीन ड्रिल का जिक्र किया है, जहां से 65-90 डिग्री सेल्सियस तापमान के गर्म पानी के चश्मे निकल रहे थे। यमुनोत्री के निकट भी एक जियोथर्मल स्प्रिंग से 88-90 डिग्री सेल्सियस गर्म पानी निकलता पाया गया था। वैज्ञानिकों ने कहा था कि बदरीनाथ, गौरीकुंड और तपोबन के जियोथर्मल क्षेत्रों को विकसित किया जा सकता है।

हिमालय की गर्मी से बनेगी बिजली, जियो थर्मल एनर्जी पर काम शुरू

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने वर्ष 2020 में हिमाचल और उत्तराखंड में जियोथर्मल स्प्रिंग पर बड़ा अध्ययन किया था। वाडिया के निदेशक कालाचंद साईं ने बताया था कि किस तरह से उत्तराखंड में 40 और हिमाचल प्रदेश में 35 गर्म पानी के चश्मे चिह्नित किए गए हैं जो कि भविष्य में ऊर्जा उत्पादन की दृष्टि से काफी कारगर साबित हो सकते हैं।

प्रदेश में जल विद्युत परियोजनाएं लंबे समय से लटकी हैं। अब सरकार इसके विकल्पों पर काम कर रही है ताकि भविष्य में राज्य में बिजली जरूरतों के हिसाब से उत्पादन किया जा सके। राज्य सरकार ओडिशा में कोयले से बिजली उत्पादन करेगी। इसके लिए यूजेवीएनएल-टीएचडीसी का संयुक्त उपक्रम बनाया जा रहा है। दूसरी ओर, बारिश के पानी से बिजली के लिए राज्य में राज्य सरकार पंप स्टोरेज पॉलिसी बनाई जा रही है। जिंदल समूह ने प्रदेश में चार जिलों देहरादून, नैनीताल, अल्मोड़ा और चंपावत में इसके लिए सर्वेक्षण पूरा कर लिया है।

भू-तापीय ऊर्जा से देश में 10,600 मेगावाट बिजली उत्पादन की संभावनाएं 15 साल पहले आंकी गई थीं। केन्या में 129 मेगावाट, इथोपिया में सात मेगावाट, पापुआ न्यू गिनी में 56 मेगावाट के प्रोजेक्ट को इसके उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है। अमेरिका(3676 मेगावाट) सहित दुनिया के 20 देश आज जियोथर्मल एनर्जी से बिजली उत्पादन कर रहे हैं।

जियोथर्मल एरिया में ड्रिल किया जाता है। यहां गर्म पानी के चश्मे की भाप से टरबाइन चलाकर बिजली उत्पादन होता है। इस भाप से बनने वाला पानी दोबारा जमीन के भीतर ही ड्रिल करके भेज दिया जाता है।

राज्य के निगम का 1396 मेगावाट उत्पादन

वर्तमान में उत्तराखंड जल विद्युत निगम (यूजेवीएन) के तहत 1396.1 मेगावाट की जल विद्युत परियोजनाएं चल रही हैं। 440.5 मेगावाट की जल विद्युत परियोजनाओं पर निर्माण कार्य चल रहा है। इसके अलावा, सौर ऊर्जा के करीब 60 प्रोजेक्ट चल रहे हैं। इसके सापेक्ष बिजली की मांग कई गुना अधिक है।
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