6 जून 2025 को निर्जला एकादशी: व्रत, राशि परिवर्तन और लक्ष्मी योग का दुर्लभ संयोग
देहरादून। वर्ष 2025 में निर्जला एकादशी का पर्व 6 जून को मनाया जाएगा। यह व्रत सभी 24 एकादशियों में सबसे बड़ा और पुण्यदायी माना जाता है। इस बार की निर्जला एकादशी विशेष ज्योतिषीय और धार्मिक संयोगों के कारण और भी अधिक फलदायक मानी जा रही है।
इस दिन ग्रहों के राजकुमार बुध भी राशि परिवर्तन कर रहे हैं। वे 6 जून को अपनी स्वराशि मिथुन में गोचर करेंगे। इसके अतिरिक्त, यह तिथि शुक्रवार को पड़ रही है, जो मां लक्ष्मी को समर्पित होता है। ऐसे में भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और ग्रहों की अनुकूलता का त्रिवेणी संयोग इस दिन को विशेष बना रहा है।
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि महाभारत के भीम ने सभी एकादशी व्रत करने में असमर्थता जताई थी, तब ऋषि व्यास ने उन्हें सिर्फ एक व्रत — निर्जला एकादशी — करने का सुझाव दिया, जिसे करने से वर्ष की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
इस दिन भक्त बिना जल ग्रहण किए उपवास करते हैं और पूरी श्रद्धा से भगवान विष्णु की पूजा, ध्यान, मंत्र जाप, आरती, और चालीसा पाठ करते हैं। माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से विष्णु जी की आराधना करने से धन, समृद्धि, सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस साल के विशेष संयोग
🔹 तिथि: शुक्रवार, 6 जून 2025
🔹 व्रत: निर्जला (भीमसेनी) एकादशी
🔹 ग्रह संयोग: बुध का मिथुन राशि में गोचर
🔹 वार योग: शुक्रवार (मां लक्ष्मी का दिन)
क्या करें इस दिन
- उपवास रखें: यदि स्वास्थ्य अनुमति दे, तो निर्जला व्रत करें (बिना जल के)।
- भगवान विष्णु की पूजा करें: पीले पुष्प, तुलसी, और पंचामृत से पूजन करें।
- मंत्र जाप: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप विशेष फलदायी होता है।
- दान करें: जल, फल, वस्त्र, छाता, पंखा और अनाज का दान विशेष पुण्य प्रदान करता है।
- ध्यान और भजन-कीर्तन: पूरे दिन भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करें।
निष्कर्ष
इस वर्ष की निर्जला एकादशी व्रतधारियों और भक्तों के लिए एक दुर्लभ और अत्यंत शुभ अवसर लेकर आई है। ग्रहों की अनुकूल स्थिति, विशेष वार योग और देवी-देवताओं की कृपा एक साथ मिलकर इस दिन को आध्यात्मिक उत्थान और कर्म सुधार के लिए श्रेष्ठ बना रहे हैं।