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Wednesday, March 22, 2023
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अद्भुत और अनोखी है ‘मायापुरी’ की शक्तिपीठ की कहानी, यहीं गिरी थी माता सती की नाभि और दिल

अद्भुत और अनोखी है ‘मायापुरी’ की शक्तिपीठ की कहानी, यहीं गिरी थी माता सती की नाभि और दिल

 

हरिद्वार (मायापुरी क्षेत्र) में पुरातन काल से ही तीन शक्तिपीठ त्रिकोण के रूप में स्थित हैं। त्रिकोण के उत्तरी कोण में मनसा देवी, दक्षिण में शीतला देवी और पूर्वी कोण में चंडी देवी स्थित है।

विश्व प्रसिद्ध धर्म स्थल हरिद्वार में हर कदम पर देवी-देवताओं का वाास है। यहां पूजा-पाठ करने का विशेष महत्व है। 52 शक्तिपीठों में से माया देवी मंदिर एक है। यह वह स्थान है जहां देवी सती का हृदय और नाभि गिरी थी। मायादेवी हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी भी हैं। प्राचीन काल में हरिद्वार को मायापुरी के नाम से जाना जाता था।

हरिद्वार (मायापुरी क्षेत्र) में पुरातन काल से ही तीन शक्तिपीठ त्रिकोण के रूप में स्थित हैं। त्रिकोण के उत्तरी कोण में मनसा देवी, दक्षिण में शीतला देवी और पूर्वी कोण में चंडी देवी स्थित हैं। इस त्रिकोण के मध्य पूर्वाभिमुख स्थित होने पर वाम पार्श्व अर्थात उत्तर दिशा में क्षेत्र की अधिष्ठात्री भगवती माया देवी और दक्षिण पार्श्व में माया के अधिष्ठाता भगवान शिव श्री दक्षेश्वर महादेव के रूप में स्थित हैं। यहां पूजा-अर्चना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। नवरात्र में मां के दरबार में शीश नवाने रोजाना बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इन दिनों मंदिर की साज-सज्जा भी देखते ही बन रही है।

ये है मान्यता

राजा दक्ष की पुत्री माता सती जब भगवान शिव के मना करने पर भी अपने पिता के यज्ञ में भाग लेने पहुंच गईं, तब वहां उपस्थित ऋषि-मुनियों और देवों ने उन्हें अपमानित किया। राजा दक्ष ने जहां छोटे-छोटे देवताओं, यक्ष, गंधर्वों का भाग यज्ञ स्थल पर रखा था, वहीं भगवान शंकर का न कोई भाग था और न कोई आसन बिछाया गया था। यह देख माता सती बहुत दुखी हुईं। पिता ने उनकी इतनी उपेक्षा की कि उन्होंने अपमान की अग्नि में प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। कालांतर में शिव सती की देह को कंधे पर उठाए पूरे लोक में घूमते रहे। इस दौरान भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चला दिया। जिससे माता सती की देह के टुकड़े-टुकड़े हो गए। जिस स्थल पर सती की देह रखी गई थी, वहां नाभि गिरी, वही स्थल माया देवी के नाम से विख्यात है।

भगवती की 52 शक्तिपीठों में से एक

माया देवी भगवती की 52 शक्तिपीठों में से एक है। चूंकि हरिद्वार में भगवती की नाभि गिरी थी, अत: इस स्थल को ब्रह्मांड का केंद्र भी माना जाता है। माया देवी हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण डाकिनी, शाकिनी, पिशाचिनी आदि अला बलाओं से तीर्थ की रक्षा करती हैं। कहा जाता है कि यहां दर्शन करे बिना तीर्थों की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती।
माया देवी का मंदिर अति प्राचीन काल से विद्यमान है। वास्तव में दक्ष प्रजापति क्षेत्र का यह सर्वाधिक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर का अनेक बार जीर्णोद्धार किया गया। वर्तमान समय में मंदिर का प्रबंध जूना अखाड़ा देखता है। मंदिर में सायं कालीन आरती देखने योग्य होती है। हर साल लाखों श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शनार्थ पहुंचते हैं। विशेषकर गुजरात, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल और उड़ीसा से आने वाले यात्री माया देवी का दर्शन अवश्य करते हैं।

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