देहरादून — उत्तराखंड में आई आपदा एक बार फिर उन चेहरों को सामने ले आई है जो हर संकट को केवल टीआरपी और सनसनी फैलाने का जरिया मानते हैं। सोशल मीडिया और बाहरी मीडिया हाउसों की एक जमात, जिन्हें न तो ज़मीनी हकीकत से कोई लेना-देना है और न ही स्थानीय लोगों की तकलीफों से, केवल नकारात्मकता फैलाने के उद्देश्य से सक्रिय हो गई है।
हर आपदा की तरह इस बार भी कुछ लोग अवसर की तलाश में सरकार के प्रयासों की अनदेखी कर, केवल अफवाहें फैलाकर खुद को “वीर” सिद्ध करने में जुटे हैं। ये वही लोग हैं जो हर कठिन घड़ी में सरकार पर निशाना साधते हैं, लेकिन खुद कभी ग्राउंड ज़ीरो पर नजर नहीं आते।
इस बीच, धराली क्षेत्र में आई आपदा से प्रभावित लोगों के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार ज़मीनी स्तर पर राहत और बचाव कार्यों की निगरानी कर रहे हैं। मुख्यमंत्री स्वयं ग्राउंड जीरो पर मौजूद रहकर राहत कार्यों में जुटी टीमों का उत्साहवर्धन कर रहे हैं और हर जरूरी निर्देश समय पर दे रहे हैं। केंद्र सरकार के सहयोग से प्रभावित क्षेत्रों में सड़कें खोलने, फंसे लोगों को सुरक्षित निकालने और आवश्यक सामग्री पहुंचाने का कार्य लगातार जारी है।
पिछले पांच दिनों से चल रहे राहत-बचाव अभियान में रविवार का दिन विशेष है। खराब मौसम के बावजूद राहत दल मलबा हटाने, रास्ते खोलने और लापता लोगों की तलाश में पूरी तरह जुटा हुआ है। हालांकि अभी तक लापता लोगों के जीवित मिलने की संभावना बहुत कम है, लेकिन प्रशासन हर संभावित प्रयास कर रहा है।
यह रिपोर्ट किसी व्यक्ति विशेष या मीडिया समूह को निशाना बनाने के उद्देश्य से नहीं है। बल्कि यह सवाल उठाती है कि क्या केवल डर फैलाना ही खबर है? क्या ग्राउंड पर हो रहे सकारात्मक प्रयासों को दिखाना अब ‘अलोकप्रिय’ हो गया है?
समाज और मीडिया की ज़िम्मेदारी है कि जहां आलोचना जरूरी हो वहां उसे पूरी ताकत से किया जाए, लेकिन जहां मेहनत और ईमानदारी से कार्य हो रहा हो, वहां भी उसे उतनी ही प्राथमिकता से दिखाया जाए। आपदा के समय केवल पैनिक फैलाना नहीं, समाधान और सहयोग का संदेश देना ही सच्ची पत्रकारिता और नागरिकता है।



