उत्तराखंड बनने के बाद बसपा लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव, प्रदेश में अपनी पैठ बनाने की कोशिश करती रहती है। विधानसभा चुनाव में प्रदेश के मैदानी जिले हरिद्वार से एक बार बसपा को सफलता भी मिली, लेकिन लोकसभा चुनाव में पहाड़ में बसपा के वोट हर बार घटते रहे। हाथी कभी नहीं चढ़ा पहाड़ हरिद्वार में कैडर बचाये रखना बना चुनौती उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव में हाथी अपने विधायक विधानसभा में पंहुचा पाया था लेकिन उसके बाद लगातार मायावती का हाथी अपनी राजनैतिक सियासत को खत्म करता देखा गया उत्तराखंड में बीजेपी सरकार के साथ उसका गठजोड़ भी देखा जा चूका है लेकिन लोकसभा चुनाव में हरिद्वार सीट पर अपने कैडर वोटरों को बचाये रखा हाथी के लिए मुश्किल नज़र आ रहा है
इस बार चुनाव में पहली बार बसपा ने सीमांत जनपद के दूरस्थ क्षेत्र के प्रत्याशी पर अपना विश्वास जताया है। उत्तराखंड बनने के बाद बसपा लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव, प्रदेश में अपनी पैठ बनाने की कोशिश करती रहती है। विधानसभा चुनाव में प्रदेश के मैदानी जिले हरिद्वार से एक बार बसपा को सफलता भी मिली, लेकिन लोकसभा चुनाव में पहाड़ में बसपा के वोट हर बार घटते रहे। बसपा ने वर्ष 2004 में टिहरी लोकसभा से प्रत्याशी मैदान में उतारा, लेकिन उन्होंने नाम वापस ले लिया था।
मुन्ना सिंह चौहान वर्ष 2009 में बसपा के चुनाव चिह्न पर मैदान में उतरे
इसके बाद वर्ष 2009 में भाजपा से बगावत कर मुन्ना सिंह चौहान वर्ष 2009 में बसपा के चुनाव चिह्न पर मैदान में उतरे। जिन्हें जौनसार पृष्ठभूमि और देहरादून जिले के नाते करीब 90 हजार के आसपास मत मिले। उसके बाद वर्ष 2014 में टिहरी लोकसभा सीट पर बसपा से वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष शीशपाल चौधरी ने चुनाव लड़ा, लेकिन वह 25 हजार मतों पर अटक गए थे।