फूलदेई माता पार्वती की ससुराल के लिए विदाई का पर्व
उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई जो कही धीरे धीरे लुप्त सा ही होता जा रहा था लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से अब फिर से लाइमलाइट में आ चुका है ऐसी है सोशल मीडिया की शक्ति. जिसे चाहे उसे आसमान पर बिठा सकती है ये सोशल मीडिया. एक दौर ऐसा भी आया जब फूलदेई मात्र घर के अंदर भी मुश्किल से मांई जाने लगी थी वही व्हाट्सप्प, फेसबुक आदि सोशल ऍप्स द्वारा फिर से लोगो में जागृति आयी है. और वही भराड़ीसैंण स्थित विधान सभा भवन में भी जीवंत हुई उत्तराखण्ड के लोक पर्व फूलदेई पर लोक संस्कृति.
फूलदेई के अवसर पर क्षेत्र के बच्चों ने पारम्परिक मांगल गीतों के साथ रंग-बिरंगे प्राकृतिक पुष्प बरसाये. विधान सभा अध्यक्ष के साथ कैबिनेट मंत्रियों एवं विधायकों ने बच्चों से भेंट कर अपनी परम्परा से जुड़ने के लिए उत्साहवर्धन किया. सभी ने अपनी समृद्ध लोक संस्कृति एवं परम्पराओं के संवर्द्धन की जरूरत भी बतायी.
एक फूलदेई ही नहीं ऐसे जाने कितने लोकपर्व हैं जो अब फिर से इन सोशल साइट्स के द्वारा जीवंत हो आये हैं और ये एक बहुत अच्छी शुरुआत भी है. जहा एक ओर सोशल मीडिया के कई तरह के साइड इफेक्ट्स तो हैं ही लेकिन जैसे हर सिक्के के दो पहलु होते हैं वैसे ही सोशल मीडिया का भी ये दूसरा पहलु है जो कि जन जागरूकता का काम करता है और लोगो तक बहुत अच्छी चीजे भी पहुँचता है. ये हमारे ऊपर है हम किस चीज को ग्रहण करते है अच्छी या बुरी.
चैत्र मास की संक्रांति को आयोजित होने वाले उत्तराखण्ड के लोक पर्व फूलदेई के अवसर पर भराड़ीसैंण स्थित विधानसभा भवन में बड़ी संख्या में क्षेत्र के बच्चों ने पारम्परिक मांगल गीतों के साथ रंग-बिरंगे प्राकृतिक पुष्पों की वर्षा की. बच्चों के साथ विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी, कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, डॉ. धनसिंह रावत, सौरभ बहुगुणा, डॉ. प्रेम चन्द अग्रवाल, विधायक अनिल नौटियाल आदि ने बच्चों से भेंट कर अपनी लोक संस्कृति एवं लोक परम्पराओं से जुड़ने के लिए उनका उत्साह वर्धन किया.
विधान सभा अध्यक्ष के साथ सभी ने इस पावन पर्व की बधाई देते हुए कहा कि हमारे पर्व हमें प्रकृति से जुड़ने तथा उसके संरक्षण का संदेश देते हैं। अपनी लोक परम्पराओं एवं समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संजोये रखने की भी जरूरत बतायी.
इस त्यौहार कि मान्यता यह बताई जाती है कि जब माता पार्वती की विदाई हो रही थी तब वे तिल और चावलों से देहली भेंट रही थी तो उनकी सहेलियां उदास खड़ी ये सोच रही थी कि अब पार्वती के जाने के बाद हम यहां कैसे रहेंगे और उन्होंने पार्वती से कुछ निशानी छोड़ जाने को कहा, तब माता पार्वती प्रसन्न मुद्रा में तिल चावलों से देहली भेंटने लगी तो वो तिल चावल पीले फूलो में बदल गए और उनका नाम प्यूली के फूल रखा गया. माता ने सहेलियों से कहा जब भी तुम इन पीले फूलों को देहली पर बिखोरोगे इन फूलों में तुम्हे मेरा प्रतिबिम्ब दिखाई देगा. तभी से चैत्र मास कि एक गते को फूलदेई का त्यौहार मनाया जाता है क्योंकि उस दिन माता पार्वती की ससुराल के लिए विदाई हुई थी और यह भी मान्यता है कि ये सिर्फ देहली की पूजा ही नहीं अपितु माता की भी पूजा होती है.